“हमारे समाज में शादी का मतलब लड़की की आज़ादी का दी एंड”

आप समाज के किसी भी वर्ग का हिस्सा क्यों न हों, आप अगर बीस बसंत को पार कर गए हैं तो आप पर शादी करने के लिए दबाव निरंतर बढ़ता जाएगा। यह एक हकीकत है।

भारत में लड़कियों को बचपन से ही यह सिखाया जाता है कि तुम्हें सबको खुश रखना है, किसी को ना नही कहना है लेकिन ये कभी कोई नही बताता कि लड़की की खुशी का क्या?

हर लड़की अपनी शादी को लेकर कई सपने देखती है लेकिन उसके मन में एक डर भी होता है कि क्या वह अपने ससुरालवालों को खुश रख पाएंगी? शादी के बाद लड़की की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। उसके लिए सभी लोग अंजान होते है और वह कई नए रिश्तों के साथ जुड़ जाती है। अगर हम भारत में शादी की बात करें तो यहां पर लड़की की खुशी से ज्यादा इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि वह अपने हालात और परिवार के साथ कैसे समझौता करती है। तो आइये और जानिए कि लड़की कहाँ और किस हद तक समझौता करती है।

छीन ली जाती है आज़ादी

हमारे देश में शादी के बाद पति-पत्नी की खुशी नहीं बल्कि इस बात पर ध्यान दिया जाता है कि कैसे लड़की ने खुद को नए घर में एडजस्ट किया है। एक लड़की के लिए पहला घर उसका मायका होता है, जहां वह पैदा हुई। लेकिन शादी के बाद लड़की की पहचान ही नहीं सब कुछ बदल जाता है। अधिकतर भारतीय लड़कियों से शादी के बाद उनकी आजादी छीन ली जाती है।

मायके जाने के लिए परमिशन

शादी के बाद अगर लड़की को अपने मायके जाना हो तो उसे पहले अपने ससुराल वालों या फिर पति से इजाजत लेनी पड़़ती है लेकिन ऐसा क्यों? क्या शादी के बाद उसकी अपने बुजुर्ग मां-बाप के प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं?
फिर भी हमारे देश की महिलाएं खुशी से ये सब स्वीकार कर रही हैं।

चीजों को थोपना

प्यार और सम्मान किसी पर जबरदस्ती लागू नहीं किया जा सकता लेकिन हमारे देश में ये चीजें बहु पर थोपी जाती है। उसकी अपनी इच्छाओं और आकांक्षाओं को दबा दिया जाता है लेकिन इतना सब होने के बावजूद भी बहुएं जिम्मेदारी के साथ अपना कर्तव्य निभा रही हैं।

बदलनी पड़ती है अपनी सारी आदतें

एक लड़की का जीवन पूरी तरह उसके ससुराल वालों पर निर्भर करता है। वह क्या चाहती है उसे क्या चीज कैसे पसंद है इससे किसी को कोई मतलब नहीं होता। हर कोई, यहाँ तक कि उसका पति भी यही चाहता है कि उसकी पत्नी हमेशा उसके हिसाब से चले। जब वो कहे तब पत्नी वही काम करे वरना नही।

भूल जाती है खुद की हँसी

लड़की अपने घरवालो की ख़ुशी के लिए सब कुछ चुप चाप सुनती रहती है और काम करती रहती है।

वह किस के लिए खुद की ख़ुशी कुर्बान करती रहती है।

वह सबको खुश रखने की कोशिश में खुद की खुशी भूल जाती है।

विरोध हमेशा अवरोध उत्पन्न करता है”

हर कोई अपने आप को बेहतर बताता है बनाता नहीं,
एक लड़की को हमेशा से दो ही अवसर दिये जाते है,
या तो पिता या प्रेमी तीसरा रास्ता कोई होता नहीं।।
किसी एक का चुनाव करने से दूसरे के प्रति अन्याय साबित होता है।।

आख़िर में उसको मिलती है ढेर सारी उपाधियाँ या तो वो कहलायेंगी भागी हुई चरित्रहीन लड़की या प्रेमी पक्ष द्वारा बड़े भारी भरकम वाले शब्द, किंतु असल ज़िंदगी में उन लड़कियों को समझने वाला कोई नही होता है।।


खैर समाज पक्का उन लड़कियों को महान पुकारता होगा जो समाज द्वारा बनाई गयी सभी नियम कानून को मानती होंगी, और उन लड़कियों का बहिस्कार किया जाता होगा जो अपनी पसंद को प्राथमिकता देती होंगी।।


खैर शादी के बाद की कुछ घरों में लड़कियों के साथ आज भी अलग अलग तरीकों से यातना दी जाती है।।

पापा ने समझाया था कि ना हम कुछ लाए थे, ना हम कुछ देंगे, बेटी इसी तरह तो हम समाज को बदलेंगे, पर आप गलत थे पापा” क्योंकि दहेज तो गरीब से गरीब बाप भी देता है ये बात बाद में पता चलता है।।

पढ़ाया लिखाया जाता है लड़कियों को ताकि कुछ कर सके पर हर माता पिता यहां गलत होते हैं”शायद आपको रसोई का काम सिखाना था” और
“ननद के पाव में तेल कैसे लगाते हैं ये बताना था”
पर किस्मत थोड़ी अच्छी थी,
पति ने नौकरी पे लगाया, नौकरी करनी है तो करो
पर घर के काम में कमी ना रहे.

एक ही ऑन्टी थी सफाई के लिए पर उनके साथ सफाई करना जरूरी है ये बात सिखाई जाती थी,
कोशिश करो
जल्दी उठो,
सफाई करो,
नास्ता बनाओ,
लेट हो जाओ पर लंच बना कर ही ऑफिस जाओ, Dinner पे टाइम से आ जाओ, क्योंकि हम जल्दी खा लेते हैं,

“नौकरी तुमने करी है तुम भुगतों ” हर वक्त सुनने को मिलता है।।
क्यूँ है ऐसा आज भी समाज बस अपनी बेटियों के लिए बदलता है,


हर रोज ये लावा मन में सुलगता है,

ये पहनो
बाल ऐसे बनाओ,
नहाने में 2 घंटे मत लगाओ,
सब्जी में नमक ज़्यादा है तो सबके सामने क्लास लगाओ,

Love मैरिज थी तो सबको लगा जो चाहे करे इसके साथ क्योंकि अब कोई नही है इसके पास।।
और अरेंज मैरिज की बात तो बहुत दूर की बात है।।

(शादी करना कोई बड़ी बात नही, लेकिन निभाना बहुत बड़ी बात होती है और ये सिर्फ औरतों पर ही लागू होती है)

(परेशानियों को भी बताइये आप मुस्कुरा कर हर तकलीफ़ को पार कर सकते हैं लेकिन ज़्यादा मुस्कुराने से गाल दर्द करते हैं, रो भी नही सकते कही आँखों को तकलीफ़ न हो जाए) समाज और परिवार द्वारा खूब ढेर सारा रुपया पैसा देकर या तो लड़की ख़रीदी जाती हैं या फ़िर अच्छी खासी रकम लेकर कही दूर शहर में विवाह करा दिया जाता हैं, और परिवार ये समाज सभी राज़ी ख़ुशी अपना जीवन यापन करते है।।

बगावती लड़कियाँ जन्म से ऐसी नही होती बस थोड़ा पढ़ाई लिखाई कर लेती है तो उन्हें ज्ञान हो जाता है अपने अधिकारों का खैर हमेशा और युगों युगों से चला आया है,
विरोध हमेशा अवरोध उत्पन्न करता है तो चुप चाप एक संस्कारी लड़की बने रहिये या मन है बगावत करने का तो सोच लीजिये…


“ये समाज नही आसां इतना तो समझ लीजिये एक आग का दरिया है और जल भून के मरना है”

लेखक – विभा पाठक

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