समाधिस्थ आचार्य श्री विद्यासागर को दी विनयांजलि

गौरेला – पेण्ड्रा – मरवाही (दिलेश्वर राजपूत) : साधना ज्ञान और चारित्र के संगम श्रमण श्रेष्ठ संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के समाधिमरण के उपरांत विनयांजलि सभा में वक्ताओं ने साधना का सूरज, परम् त्यागी, स्वपरहितकारी बताया।उनका प्रकाश सदियों तक मार्गदर्शन करता रहेगा। दिगंबर जैन समाज गौरेला द्वारा आयोजित विनयांजलि सभा में नगर पालिका गौरेला की अध्यक्ष श्रीमती गंगोत्री राठौर न आचार्य श्री के प्रति अपने भाव व्यक्त करते गौरैला नगर के एक चौक का नाम आचार्य विद्यासागर चौक करने की घोषणा की मरवाही विधायक प्रणव मरपच्ची ने अपनी विनयांजलि देते हुये कहा कि उशके दर्शन करने का सौभाग्य मुझे मिला,उनके दर्शन करन से साक्षात भगवान के दर्शन की अनुभूति होती थी। हम सब उनके विचारों के प्रकाश में संयम और अनुशासन को अपनायेगें। स्वामी परमात्मानंद ने आचार्य श्री विद्या सागर महाराज को समस्त जगत का संत बताया। आचार्य महाराज को केवल जैन समाज के संत की परिधि में रखना ठीक नहीं है।सर्वोच्च साधना करने वाले ऐसे संत बहुत दुर्लभ हैं। प्रोफेसर मोहन कुमार ने आचार्य श्री की साहित्य साधना का उल्लेख करते हुये बताया कि उनके व्यक्तित्व और रचनाओं पर अनेक शोधार्थियों ने शोध किया है। कोटा विधायक अटल श्रीवास्तव के संदेश को सुनाते हुये पेण्ड्रा के पार्षद रमेश साहू ने कहा कि गौरेला नगर में आचार्य श्री विद्यासागर महाराज के आगमन की स्मृति को चिरस्थाई बनाने के लिये स्वागत द्वार के निर्माण के लिये विधायक निधि से छै लाख की राशि स्वीकृति दी है। विनयांजलि सभा में नगरपालिका अध्यक्ष गौरैला श्रीमती गंगोत्री राठौर,नगर पालिका पेण्ड्रा अध्यक्ष राकेश जालान, उपाध्यक्ष पंकज तिवारी, पूर्व साडाध्यक्ष महेन्द्र सोनी,ओमप्रकाश बंका पेण्ड्रा, मसीही समाज से अतुल आर्थर, विजय अग्रवाल, तीरथ बड़गैंया,प्राचार्य नरेन्द्र तिवारी, प्रकाश नामदेव, नगर पंचायत गौरेला की पूर्व अध्यक्ष श्रीमती संध्याराव,रमेश साहू,गोपाल अग्रवाल,पवन केशरवानी, बालकृष्ण अग्रवाल, आशीष गुप्ता, अजीत गहलोत, पुष्पराज सिंह,उत्तम चंद जैन,अशोक जैन,किशोर जैन,सुधीर जैन,सुधीर जैन प्राचार्य, संजय सिंघई, संदीप सिंघई,सचिन जैन,गौरव जैन,जितेन्द्र जैन आदि विचार व्यक्त किये।

जैन समाज वरिष्ठ सदस्य वेदचन्द जैन ने कहा कि देह त्याग कर आचार्य महाराज दिव्यरूप हो गये हैं हमारी व्याकुलता इसलिए है क्योंकि हमारी आंखों में देह दर्शन करने की ही सामर्थ्य है दिव्यदर्शन करने में हम समर्थ नहीं है,आचार्य महाराज ने समाधि लेकर काया का त्याग किया।मृत्यु ने उनका वरण नहीं किया अशक्त काया से मुक्ति के लिये उन्होंने समतापूर्वक सचेतन अवस्था में मृत्यु का वरण कर माटी की दे माटी को ही दे गये। अनाकांक्षी, अनियतविहारी,निस्पृह, निरापेक्षी,स्वपरहितकारी आचार्य श्री विद्यासागर महाराज त्याग के सर्वोच्च रूप थे।मोहक मुस्कान के साथ असहनीय परीषह को भी समता के साथ सहन करने की क्षमता उनमें समाहित थी। सभा के आरंभ में खुशी सिंघई ने मंगलाचरण किया। अंजलि जैन,श्वेता जैन विधि जैन,नयना जैन,प्रीति जैन,प्रीति गोहलिया,सीमा जैन ने भी विनयांजलि दी। सभा का संचालन वेदचन्द जैन ने किया।

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